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CG: प्रदेश के आदिवासी बच्चों के उद्धार में जुटा बलिया का बहादुर STF हवलदार, बच्चों ने जीते कई पदक

पुलिस हो फौज या फिर देश का कोई भी सुरक्षा अथवा अर्धसैनिक बल. इन सबसे जुड़े बहादुरों का एक ही प्रमुख काम या जिम्मेदारी समझी जाती है…सीमाओं और हिंदुस्तानियों की सुरक्षा. नहीं ऐसा नहीं है.

इन्हीं सुरक्षा और अर्धसैनिक बलों की भीड़ में उत्तर प्रदेश के बलिया का बहादुर और छत्तीसगढ़ एसटीएफ का हवलदार मनोज प्रसाद कुछ अलग ही कर गुजरने की धुन में हैं. वे नारायणपुर आदिवासी इलाके के बच्चों को खेल के जरिए मुख्यधारा में जोड़ने के अविश्वनीय अभियान में जुटे हैं. इसके लिए मनोज पर्साद ने माध्यम चुना ‘मलखंब’ को. ताकि इस खेल के बलबूते ही कम से कम कुछ आदिवासी बच्चों की जिंदगी तो सजाई-संवारी जा सके. फिलहाल ऐसे बिरले रणबांकुरे बहादुर के ही भागीरथ प्रयासों का प्रतिफल है जो, आज उनके द्वारा प्रशिक्षित 10 आदिवासी बच्चे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हिस्सा ले रहे हैं, मलखंब प्रतियोगिता में.

खुशकिस्मत यह सभी 10 बच्चे नारायणपुर आदिवासी इलाके से ताल्लुक रखते हैं. इन सभी बच्चों को अबूझमाड़ मलखंब अकादमी के बैनर तले प्रशिक्षित किए गए हैं. छत्तीसगढ़ स्पेशल टास्क फोर्स में हवलदार के पद पर तैनात मनोज प्रसाद इस अकादमी को खुद ही चलाते हैं. खबरों के मुताबिक, अब तक इस अकादमी के कई बच्चों ने तमाम कमाल कर दिखाए हैं. मगर इस सब कामयाबी का कोई फर्क मनोज प्रसाद के ऊपर नहीं पड़ा है. सिवाए इसके कि वे चाहते हैं कि आज 10 बच्चे आदिवासी इलाके से बाहर आ सके हैं. धीरे धीरे यह संख्या बस बढ़ती ही जाए. इस परिपाटी को आइंदा भी सहयोग और बढ़ावा ही मिलता रहे, ताकि इसमें कहीं कोई रोड़ा बीच में न आ सके.

मजदूरों के बच्चों ने जीता पदक

और तो और इनमें कई बच्चे तो वे हैं जिनके माता पिता परिवार का पेट पालने के लिए दिहाड़ी मजदूरी तक करते हैं. जिनका खेल और आदिवासी इलाके से बाहर की दुनिया से दूर दूर तक का कोई वास्ता ही नहीं है. इनमें राकेश वरदा ने कुछ वक्त पहले ही व्यक्तिगत ऑल राउंड प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता था. छत्तीसगढ़ ने लड़कों और लड़कियों की टीम प्रतियोगिता में तीसरा स्थान हासिल किया था. जबकि राकेश के अतिरिक्त लड़कों की टीम के मानू, मोनू, नेताम, संतोष सौरी व श्यामलाल पोटाई ने, तथा सरिता दुर्गेश्वरी, संताय पोटाई, जयंती आदि लड़कियों की टीम की सदस्य हैं.

नौकरी करते हुए भी नेक काम में बंटा रहे हाथ

खुद को मजबूत फोर्स का अदना सा जवान समझने वाले मनोज को इस बात का कोई घमंड नहीं है कि, आदिवासी बच्चों के लिए उनके द्वारा किए जा रहे सार्थक प्रयासों की चर्चा देश के दूर दराज इलाके में भी होने लगी है. वे आज भी खुद को बस एसटीएफ का एक हवलदार ही समझते हैं. हां, उन्हें इस बात की आत्मिक संतुष्टि है कि वे वर्दी की नौकरी करते हुए भी बच्चों के हितार्थ किसी नेक काम में अपना हाथ बंटा पा रहे हैं. जिसका कोई मोल नहीं है. वे चाहते हैं कि अब इस नेक काम की चेन आगे तक लंबी बनती जाए, ताकि इन जैसे और भी तमाम आदिवासी बच्चों को मजबूत राह दी जा सके.

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